सोचता हूँ, चलो एक तस्वीर बनाऊ,
अपने हाथो से सजाऊ, रंग भरू,
जींदगी के सारे चीतॄ दिखावू,
फीर उसी तस्वीर में,ख़ुद को डृंडं पाऊँ,
पर , न जाने क्यों, कैसा लगता है,
सब सही है , पर अजीब लगता है,
करता हूँ कुछ, होता कुछ और है,
ये सोच कर ही बहुत डर लगता है।
जो भी माँगा है, मैंने तुमसे आज तक,
तुमने शायद् ही, कभी पुरा कीया ,
माँगा कुछ तो, कभी कुछ और ही दीया,
की खता क्या,की सिला मुझे ही दीया।
पर,तुम तो सबसे उप्पर हो,
शायद ठीक ही कीया होगा तुमने,
तुम ही सही , जो सब छीन लीया,
माँगा था प्यार भर के, और तुमने गम से उबरने न दीया।
फीर भी ,चलो तुम पर यकीन करते है ,
आज तेरे दर पर फीर कदम रखते है,
ख़ुद की खुशी कभी मांगी नही,
आज तुझे इसको खुश रखने की दुआ करते है।
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