Friday, February 15, 2008

समय से संघर्ष...

वक्त , न जाने , मुझे क्या क्या सिखिलायेगा?
कभी कभी इतने प्यार को संभालना,
तो कभी पीठ पेर खंजर झेलना,
कभी दोस्तानो के बीच में घुम्शुदगी,
तो कभी घुम्शुदगी में दोस्ती,
तलाश करना सिखायेगा।

माना थोड़ा समझदार हूँ,
पर मुझे क्यों इतना लड़ना सिखाया है,
हर राह पर पत्थर क्यों बीछाए है,
जिसको चाहो वही बदल जाता है ,
जिनके लीये आंखो में चमक हो,
उनके लीये ही आंखो में पानी भर जाता है।

दील में जगह थी , जिनके लीये ,
अब उनके लीये भी आंखो में भी,
पल भर की जगह नही है,
फीर क्यों, आखीर क्यों ,
जींदगी मेरी बदला जाती है,
लड़ लड़ कर मेरी ख़ुद से तबियत हार जाती है।

बदलना अपने आप को आसान नही,
पर ख़ुद को कई बार बदले ही पाया है,
फीर भी क्यों, खूब को गुनाहगार पाया है,
पर कोई बात नही ,सब चलता है,
वक्त भी कभी कभी झुकता है ,
बस इस वक्त को झुकने में, थोड़ा वक्त तो लगता है।

1 comment:

Yayaver said...

Highly Autobiographical!!!